निकम्मों में हड़कंप, भ्रष्टों में खलबली और जनता को कीड़े मकोड़े समझने वाले पटवारीयों से लेकर सब इंजीनियरों और जूनियर इंजीनियरों में बिलबिलाहट मची, दे दनादन निलंबन और वेतन जप्त के साथ डी और सेवा समाप्ति

 मुरैना , 17 दिसंबर ( ग्वालियर टाइम्स ) शीर्षक पढ़ कर अब तो आपको समझ आ ही  गया होगा कि हम किसकी बात कर रहे हैं । युगों से और अरसे से पटवारी किसान का और खेत का खुदा होता है । 

ग्रामीण , किसान भगवान को जानें या न जानें , कलेक्टर को जानें न जानें लेकिन चौधरी ( अंग्रेजों के जमाने का एक पद) , पटेल ( अंग्रेजों के जमाने का एक पद ) और पटवारी ये हर किसान और खेत जानता है , उगाही से लेकर सिंचाई और वसूली तक का ये लोग काम करते हैं या करते आये हैं , किसी भी खेत को या जमीन को किसी भी जरीब से या पैमाने से नाप देना और किसी की भी मेंड़ इधर उधर सरकाना , सरकारी जमीन किसी के भी नाम लिख देना या दिखा देना , अट्टे पट्टे से लेकर सुपुर्दगी तक सब का सब पूरा गांव किसान खेत खलिहान ही इन ही से चलता है । 

युगों और दशकों से ये तीन हर किसान के खैर ए खुदा रहे हैं , पटवारी से डरे ना डरे लेकिन पटवारी के बस्ते से तो गांव का नगरादेव और भूमिया भी थरथराता है । 

मुरैना जिला के इतिहास में पहली दफा किसानों , गांवों और खेत जमीनों पर मनमानी हुकूमत चलाने वाला खुदा थर्राया है । पटवारीयों में पहली बार घबराहट और मचलती तबियत को लगाम लग कर जी में मितली आती नजर आ रही है । पहली बार जमीनी खुदाओं पर अटैक हुआ है । 

अब तलक आदत ही नहीं रही उनकी , जब निलंबित हुये तब हर बार सोचा कि कमा कमा के इतना रख लिया है कि क्या् निलंबन और क्या सरकारी नौकरी , अब रहे या जाये , सात पुश्तें तो आराम से बैठ कर खायेंगी ही । 

चम्बल के देहाती और पुराने लोगों की एक कहावत है , भले और खानदानी लोग जब विवाह शादी करते थे तो जिन गोत्रों को वे खानदानी तौर पर छोड़ते थे उनके अलावा वे छेके हुये खानदान और परिवारों कें साथ जिन्हें और छेक कर चलते थे उसमें पुलिस और पटवारी के साथ अधिकांश '' प '' से शुरू होने वाले समाज या खानदान होते थे ( जो कि सरकारी पदों के नाम होते थे ) इन्हें लोग इशारे में कन्या राशि कहते थे, इन लोगों में विवाह नहीं करते थे  ।

खैर बरसों बाद ही सही,जमीन का खुदा कांपा है साथ ही नये जमाने के नये खुदा सब इंजीनियर और ग्राम पंचायत सचिव , ग्राम सहायक जो कि ताजी ताजी पैदाइशें हैं मगर गांवों किसानों को चूसने वाले बहुत बड़े परजीवी हैं , पैरासाइट्स हैं । 

खैर ये भी पुरानी कहावत है कि एक ईमानदार अफसर दस हजार बेईमान और भ्रष्टों के लिये महाकाल और दहशत होता है । बेईमान और भ्रष्टों की नींद हराम कर देने वाला और उन अंबर बेलों ( जड़ विहीन बेलें- पैरासाइट परजीवी) को चुन चुन कर उतन उतन कर उखाड़ फेंकने वाला होता है ।

खैर मुरैना में फिलहाल कलेक्टर अनुराग वर्मा का स्टाइलिश स्टायल जारी है , आगे आगे देखिये होता है क्या ..... इब्तिदा ए इश्क है रोता है क्या ......       

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