मुरैना , जिले में होने वाली लोक अदालत की समूची प्रक्रिया और कार्यवाही ही दूषित हो गई है , शायद नेशनल लीगल सर्विसेज एक्ट 1987 को संशोधित कर दिया गया है , मुरैना की लोक अदालत की प्रक्रिया और कार्यवाही देखते हुये ऐसा ही लगता है ।
नरेन्द्र सिंह तोमर , एडवोकेट , न्याय बंधु , प्रोबोनो लीगल सर्विसेज (न्याय विभाग , भारत सरकार) नेशनल लीगल सर्विसेज एक्ट के 1987 तहत अधिकृत एवं सूचीबद्ध ( नालसा , सालसा हेतु प्राधिकृत)
उल्लेखनीय है कि लोक अदालतें , नेशनल लीगल सर्विसेज एक्ट 1987 ( नालसा) के तहत उल्लेखित धाराओं और प्रावधानों के तहत आयोजित की जातीं हैं । इस अधिनियम के प्रावधानों में सुनाये गये फैसले पूरी तरह से अंतिम होतें हैं और जिनकी अपील या रिव्यू भारत की किसी भी अदालत में नहीं पेश किया जा सकता और न किसी भी अदालत द्वारा सुना जायेगा ।
लोक अदालत में पीठासीन न्याय अधिकारी द्वारा फैसला सुनाते वक्त , अपनी कार्यवाही में दोनों पक्षों को सुना जाना अनिवार्य है , और दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अपना प्रस्तावित फैसला वह दोनों पक्षों के सामने रखेगा , यदि दोनों पक्ष उस पर सहमत होंगे तो दोनों के बीच मध्यस्थता कर रहा न्यायायिक अधिकारी फैसले को अभिलिखित करेगा , उस पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर करायेगा , तब एक मुकम्मल राजीनामा या दोनों की सहमति से मामले का निपटारा करेगा और रिपोर्ट ऊपर भेजेगा ।
यदि दोनों पक्षों में सहमति नही बनती है तो सभी प्रस्तावित मध्यस्थता उपायों को अभिलेखित करेगा और तदनुसार मामले को ऊपर अदालत को वापिस भेज देगा और प्रकरण पूर्व की भांति न्यायालय में चालू रहेगा ।
यह नियम सभी प्रकार के सिविल मामलों और आपराधिक मामलों तथा अन्य प्रकार के मामलों में लागू रहते हैं ।
जहां तक प्री लिटिगेशन मामलों का प्रश्न है , जो कि अभी तक किसी न्यायालय में संस्थित नहीं हैं और आगे संस्थित हो सकते हैं , उन मामलों में भी उपरोक्त प्रक्रिया अपनाई जाती है , केवल अंतर इतना है कि इन मामलों को लोक अदालत के सामने आने के बाद , लोक अदालत का न्यायायिक अधिकारी , या तो उचित समझे तो उसे न्यायालय में मानते हुये उस केस को न्यायालय में भेज देगा और संस्थित कर देगा , और या फिर उचित समझे तो प्री लिटिगेशन स्तर पर ही केस को अनुचित मानते हुये खारिज कर देगा और फिर इसके बाद किसी भी अदालत में इस केस को नहीं सुना जायेगा , न इसकी अपील होगी और न ऐसे आदेश का कोई भी अदालत रिव्यू करेगी
मगर मुरैना जिला में आफर के नाम पर पूर्व से ही प्रस्ताव और फैसला तय कर लिया जाता है और एक पक्ष द्वारा निर्घारित फैसले पर ही , संबधित लोक अदालत केवल हस्ताक्षर मात्र करती है , लोक अदालत न तो दोनों पक्षों को सुनती है और न अपना मध्यस्थता भूमिका और प्रस्ताव या प्रस्तावित फैसला तय करती है , दूसरे पक्ष का प्रस्ताव मान्य है तो दस्तखत कर , समझौता कर और घर जा अपने । बडी ही अजीबो गरीब लोक अदालत प्रणाली है मुरैना जिले की ।
निम्न समाचार उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत है जो कि आगामी लोक अदालत में आना प्रस्तावित है , हालांकि प्रस्ताव देने वाली कंपनी अपना प्रस्ताव दे सकती है , और यह गैर वाजिब या गैर कानूनी नहीं है , लेकिन इसे जस का तस मान लेना और लोक अदालत में सभी केसों में ऐसा ही एकसार फैसला करना या सुनाना अवश्य संदिग्ध और गैर कानूनी है तथा नेशनल लीगल सर्विसेज अथारिटीज एक्ट 1987 के असंगत और विरूद्ध अवश्य है ।
( सभी प्रकरणों की प्रकृति और हालात , परिस्थितियां एक जैसी कभी नहीं हो सकतीं , चाहे भले ही वे एक ही धारा में विचाराधीन हों - यह न्याय का अहम सिद्धांत है )
बिजली कंपनी द्वारा विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 135 व 138 के तहत प्रकरण बनाकर विशेष न्यायालयों (विद्युत अधिनियम) में दायर किये जा चुके है। 12 दिसम्बर को आयोजित होने वाली नेशनल लोक अदालत में ऐसे उपभोक्ता छूट का लाभ ले सकते है। बिजली कंपनी मुरैना के महाप्रबंधक एवं विधि सहायक श्री एसएम श्रोत्रिय के मुताबिक ऐसे प्रकरण जो कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किये गये है, उन्हें आंकलित सिविल दायित्व की राशि पर 40 प्रतिशत व ब्याज की राशि पर 100 प्रतिशत छूट दी जायेगी। बिजली कंपनी ने नेशनल लोक अदालत में लगे प्रकरणों से संबद्ध उपभोक्ताओं को उपस्थित होने की अपील की है, जिससे वे विद्युत राशि में मिलने वाली छूट का लाभ ले सकें।
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