एन.आर.एल.एम. से जुड़कर दो समूहों ने दौना-पत्तल बनाने का किया रोजगार प्रारंभ, समूह से जुड़कर 22 महिलायें बनीं स्वावलम्बी

 कैलारस विकासखण्ड के ग्राम कल्यानपुरा-दीपहरा के रामा बाई व भीमा बाई स्व-सहायता समूह से 22 महिलायें जुड़कर स्वावलम्बी बन रहीं है। अब ये महिलायें अपने पति के साथ घर-गृहस्थी के खर्च में बराबर सहयोग दे रहीं है। रामाबाई स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती रामो और भीमाबाई समूूह की अध्यक्ष श्रीमती गुड्डी ने बताया कि अब हम चौका-चूल्हा के कार्य तक सीमित नहीं है, अब हम पति के साथ घर-गृहस्थी के खर्च उठाने में सहयोगी बन गये है। श्रीमती गुड्डीबाई ने बताया कि समूह से जुड़कर अब हमारी आर्थिक सामाजिक स्तर में उन्नयन हुआ है। यह सब मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़कर कायाकल्प हुआ है।          
    रामाबाई और भीमाबाई स्व-सहायता समूह की अध्यक्षा श्रीमती रामो और श्रीमती गुड्डी बाई ने बताया कि वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से दोनों समूहों का गठन किया गया था, जिसमें  रामाबाई समूह में 12 महिलायें और भीमाबाई समूह में 10 महिलायें जुड़ी थी। समूह में जुड़ने से पहले यह महिलायें केबल चौका-चूल्हा घर-गृहस्थी के कार्य तक ही सीमिति थीं, किन्तु समूह से जुड़ने के बाद शासन के निर्देश पर बैंक में खाता खुलवाया गया। लगातार समूह से राशि एकत्रित करके एक अच्छी खासी राशि बैंक में जमा कर दी। जमा राशि पर शासन द्वारा एक-एक लाख रूपये की राशि समूह संचालन के लिये प्राप्त हुई। दोंनो समूह पर 2 से 3 लाख रूपये की राशि होने पर दौंना-पत्तल लगाने की फैक्ट्री लगाई। 


अध्यक्ष द्वय ने बताया कि समूह को एनआरएलएम द्वारा ग्वालियर में ट्रेनिंग प्रदान की। इसके बाद दौंना-पत्तल की मशीन क्रय करने के बाद सभी महिलाओं ने युद्धस्तर से मेहनत की, जिसमें प्रतिमाह 24 हजार रूपये की बचत होने लगी। 22 महिलाओं में से कुछ महिलाओं ने कच्चा माल बाहर से लाने की जिम्मेदारी ली तो कुछ महिलाओं ने दौंना-पत्तल तैयार होने के पश्चात् मार्केटिंग में पहुंचाने की जिम्मेदारी ली। दौंना-पत्तल की फैक्ट्री दिनो-दिन रफ्तार पकड़ती गई। आज दोंनो समूह के पास 10 हजार पत्तल एवं 12 हजार दौना का स्टॉक अभी भी रखा हुआ है और बराबर ऑर्डर शहरी क्षेत्रों से मिलने लगे है। 
    अध्यक्ष द्वय ने बताया कि अब महिलायें पति का पूरा सहयोग घर-गृहस्थी चलाने में कर रहीं है। अब समूह से जुड़ने वाली महिलायें अपने घर-गृहस्थी के खर्च के अलावा स्वयं के खर्चे के लिये अपने पति के सामने हाथ नहीं फैलाती है। बल्कि शादी-विवाह आदि प्रोग्राम के लिये समूह की बचत से खर्चे के लिये अलग से अपने-अपने पतियों को सहयोग प्रदान कर देती है।

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