मुरैना 28 दिसम्बर 2020 , ग्वालियर टाइम्स कार्यालय । मुरैना नगर निगम , कहने को तो नगर निगम है , मगर नगर निगम जैसा यहां कुछ भी नहीं , शहर मानों एक छोटा सा गांव और ग्राम पंचायतों जैसा माहौल और आबो हवा । गांवों में कम से कम प्रदूषण को बाहर निकालने के लिये एक स्वच्छंद वातावरण रहता है , मगर मुरैना शहर में प्रदूषण फैलाने वाले तो बहुतेरे सैकड़ों हैं मगर इसके निस्तारण का कोई भी इंतजाम नहीं ।
नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनंद''
( लेखक सन 2001 से भारत सरकार की एन जी सी - नेशनल ग्रीन कोर्प्स के तहत मुरैना जिला पर्यावरण क्रियान्वयन एवं पर्यवेक्षण समिति - अध्यक्ष कलेक्टर मुरैना का सदस्य व संचालन समिति का प्रभारी है )
यूं तो पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत भी , नगर पालिका (नगर निगम) अधिनियम के तहत भी और मानव अधिकार अधिनियम संरक्षण अधिनियम के तहत भी , इसके अलावा एक ऐलान जो नगर निगम मुरैना द्वारा रोजाना किया जा रहा था कि ..... सम्मानीय उपभोक्ताओं ...... अगर इसे मान लें तो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत भी , शहर में चारों प्रकार के प्रदूषण या इनमें से किसी भी एक प्रकार का प्रदूषण फैलाना केवल अपराध ही नहीं बल्कि नगर निगम द्वारा और जिला प्रशासन द्वारा तुरंत व तत्काल निराकरण किया जाना चाहिये अन्यथा इसमें न्यायालय सम्यक आदेश व प्रभावितों व पीड़ितों को हर्जाना जुर्माना देने का आदेश देगा।
शहर में सबसे बड़ा प्रदूषण जमीन पर सूखे व गीले कचरे का भी है , तो जल निकासी मल निकासी सहित पेयजल के अस्वच्छ व प्रदूषित वाटर सप्लाई का भी है ।
वायु प्रदूषण में सबसे खतरनाक और जहरीला प्रदूषण शहर में फैल रहे रोजाना ही सुबह शाम के धुंयें ( गंदे व प्रदूषित ) का है । यह मसला कोई नया नहीं , बल्कि बरसों पुराना है ।
शहर में आ बसे तमाम खेत विहीन कृषि मजदूर रोजी रोटी के लिये तमाम अवसर खोजने हेतु गरीबी की मार के शिकार तो हैं हीं , किसी न किसी भांति किसी रिश्तेदार के चरण चुंबन कर रहने का आशियाना तो जैसे तैसे या फिर शहर के आसपास बना बसा लिये हैं , मगर उनका सोशो इकानामिक स्तर व दर्जा अभी भी उसी निम्नतम स्तर पर है और इधर उधर से लकड़ियां तथा अन्य चीजें चोरी चकारी करके वे अपनी गुजर बसर जैसे तैसे करते हैं , उनके पास खाना पीना बनाने खाने या पशुओं के लिये चारा तैयार करने के लिये एक गैस कनेक्शन तो बहुत दूर की बात , एक स्टोव या कोयले की अंगीठी तक नहीं है , या कहिये कि कोयला या मिट्टी का तेल खरीदने तक के पैसे नहीं है ।
ऐसे लोग सुबह शाम चोरी की गंदे पेड़ पौधों की लकड़ीयां चुराकर चूल्हा और बरोसी जलाते हैं , जिसका प्रदूषित व जहरीला धुंआं सारे मोहल्ले और सारे वायुमंडल में फैलता है । इसके अलावा नकली दवायें सप्लाई करने वाले मेडिकल रिप्रजेंटेटिव और एक्सपायरी डेट की दवायें रखने वाले एम आर उन दवाओं की लंबी चौड़ी खेप रोजाना ही मोहल्ले में जलाते हैं जिससे प्रदूषित धुंआ सारे ही वायुमंडल को अपने कब्जे में लेकर चारों और मोहल्ले में पसरा रहता है , इसके अलावा कुछ अवैध वाहन और बसें, र्टेक्टर तथा पर्यावरण का सर्टीफिकेट लिये बगैर मोहल्ले में चक्कर लगाते और लेड ( सीसा युक्त ) जहरीला धुंआं मोहल्ले में फैलाते रहते हैं ।
कुछ आपत्तिजनक व्यावसायिक गतिविधियां मसलन , लकड़ी लोहे का फर्नीचर का काम जो कि रहवासी कालोनियों और मोहल्लों में प्रतिबंधित है , आरी रंदा आदि चलाकर ध्वनि प्रदूषण सहित वातावरण में रजकणों ( डस्ट पार्टीकल्स ) उगलते रहते हैं ।
स्पष्टत: मोहल्ले के रहवासियों में इनकी वजह से तमाम बीमारीयां , संक्रामक बीमारीयां , श्वास लेने में तकलीफ , दमा , अस्थमा , फेंफड़ों के संक्रमण , किडनी संक्रमण और डेमेज जेसी तमाम बीमारीयों के साथ , ध्वनि प्रदूषण से कानों एवं मस्तिष्क से संबंधित तमाम विकार , अवसाद और हृदय रोगों , ब्लड प्रेशर जैसे तमाम रोगों से नित्य ही ग्रस्त होना पड़ता है तथा खांसी एवं फ्लू् जैसे तमाम रोगों का शिकार होना पड़ रहा है ।
गांधी कालोनी मुरैना यूं तो मुरैना शहर की सबसे पॉश कालोनी और शहर के ऐन बींचोंबीच स्थित है , मगर कतिपय नये निवासियों के कारण अब इसे पॉश कालोनी तो नहीं कहा जा सकता , लेकिन तमाम लोग इन हीं प्रदूषणों के कारण मौत के आगोश में जा चुके हैं , जिसकी फेहरिस्त काफी लंबी है ।
मेरे खुद के माता पिता जब तक जीवित रहे इन्हीं प्रदूषणों के शिकार रहे , और उन्हें सांस लेने में तकलीफ के साथ , खांसी और जल प्रदूषण ने शिकार बनाकर परेशान व तंग रखा , खांसी का मेरी मां का अंतिम दम तक इलाज चला मगर गांधी कालोनी में फैला जहरीला धुंआं उस खांसी को कभी ठीक नहीं होने देता था , अंतत: मां उसी खांसी और उसी जहरीले ध्रुंये का शिकार हो गयी और उसी से उसका स्वर्गवास हो गया । अभी पिता ने भी जब इसी महीने अंतिम सांस ली तो उन्हें भी मुरैना की गांधी कालोनी के धुंये ने मरते दम तक परेशान किया , उन्हें भी सांस लेने में बरसों से यहां तकलीफ होती थी , दम घुटता रहता था , सुबह शाम फैलता धुंआं ऊपर की मंजिल पर बहुत आसानी से पहुंचता और उन्हें परेशान रखता था , प्रदूषित अस्वच्छ और पीने के गंदे पानी ने न केवल उनका डायजेशन सिस्टम ही घ्वस्त किया बल्कि पूरी तरह से किडनी ही डेमेज कर दीं ।
ग्वालियर में उनके मृत्युकाल में जब यह सब जांचें हुईं तो टेस्ट रिपोर्टों ने सारी असलियत खोल कर रख दी , कुल मिलाकर मुरैना की गांधी कालोनी के चारों प्रदूषणों ने उनकी जान ले ली , या दूसरे शब्दों में कहें तो हत्या कर दी ।
हालांकि यह सब हम अपनी पर्यावरण समिति की बैठक में उठाते और इसका स्थाई समाधान भी कर देते , मगर अफसोस एक जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा करीब पर्यावरण समित में करीब 70-80 लाख का फर्जीवाड़ा और घोटाला कर दिया , उसके बाद से 30 मई सन 2002 के बाद इस पर्यावरण समिति की कोई भी अनिवार्य तिमाही बैठक ही नहीं हुई इसलिये इस मुद्दे को सार्वजनिक मंच पर लाना और उठाना अनिवार्य हो गया है , जिससे आम जनता और जिम्मेदार प्रशासनिक अफसर और नेता तथा नगरनिगम इसे जान सके , पहचान सके और इसका स्थाई निराकरण कर सके ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें