कुछ वर्ष पूर्व तक सर्दियों की शुरुआत होते ही मुरैना की गजक की याद सताने लगती थी लेकिन धीरे-धीरे इसके लजीज स्वाद ने इसको बारहमासी बना दिया। आज मुरैना की गजक की मांग पूरे वर्ष भर रहती है यह सच है कि सर्दियों में इसकी डिमांड कई गुना बढ़ जाती है लेकिन गर्मियों में भी इसको खाने वालों की तादात बढ़ती जा रही है। यूं मुरैना में गजक की शुरुआत 18 वीं शताब्दी के मध्य पूर्व हुई। संयोग पूर्वक बनी इस गजक रूपी मिठाई को प्रारंभ में छपरा और डलिया में रखकर गांव गांव बेचा जाता था धीरे-धीरे इसकी प्रसिद्धि बड़ी और हाट बाजार में यह ठेलों पर बिकने लगी। वर्तमान में पोरसा से लेकर सबलगढ़ तक मुरैना जिले की सभी तहसीलों में प्रमुखता से बनती और बिकती है। जिलेभर में छोटे-बड़े गजक निर्माताओं की संख्या 1 सैकड़ा से अधिक है वहीं विक्रय करने वालों की संख्या दुकानदारों और हाथ ठेले वालों को मिलाकर गिनी जाए तो सैकड़ों में बैठेगी।
मुरैना गजक का स्वाद जिला और प्रदेश सहित देश की सरहद को पार कर विदेश तक पहुंच चुका है इसलिए देश के हर बड़े शहर में मुरैना गजक के नाम से गजकी अली दुकाने मिल जाती हैं।
वर्ष 2019 में मुरैना में तत्कालीन कलेक्टर और आचार्य आनंद क्लब के सहयोग से आयोजित हुए गजक मीठोत्सव से गजक की आधा सैकड़ा से अधिक वैरायटी डिजाइन बाजार में दिखाई देने लगी है, इसके साथ ही साथ अब शुगर-फ्री गजक भी बाजार में बिकने लगी है। गजक उत्पादकों के लिए मुरैना गजक को जीआई टैग दिलाने हेतु भी प्रशासन और क्लब द्वारा गंभीर प्रयास किए गए इससे गजक व्यापारियों में उत्साह का संचार हुआ है।
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