ग्वालियर-चंबल संभाग में खाद्य प्रसंस्करण की अपार संभावनाएं , छोटे किसानों को सशक्त करके ही कृषि में लाई जा सकेगी आत्मनिर्भरता, ग्वालियर में खाद्य प्रसंस्करण पर शिखर सम्मेलन का आयोजन- केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर

  केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा है कि ग्वालियर-चंबल संभाग अंचल में खाद्य प्रंस्करण के क्षेत्र में अपार संभावनाए हैं और इनका दोहन करके इस क्षेत्र के छोटे व मझौले किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त किया जा सकता है। मंत्री श्री तोमर शुक्रवार को खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय, एैसोचेम और इनवेस्ट इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में श्मध्यप्रदेश में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण के अवसरश् विषय पर आयोजित शिखर सम्मेलन को वर्चुअल माध्यम से संबोधित कर रहे थे।  
    कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने कहा कि ग्वालियर-चंबल अंचल सांस्कृतिक, पुरातात्विक, व्यापारिक क्षेत्र के साथ ही कृषि के क्षेत्र में भी समृद्ध है। यहां गेहूं और धान का उत्पादन तो अच्छा होता ही है दलहन व तिलहन और विशेषकर सरसों के उत्पादन, प्रसंस्करण की भी अपार संभावनाएं हैं। मुरैना, भिण्ड और ग्वालियर में तिलहन प्रसंस्करण के कई उद्योग सुचारू रूप से चल रहे हैं, लेकिन अब इसे और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
    मंत्री श्री तोमर ने कहा कि मुरैना जिला शहद की दृष्टि से भी अग्रणी है। नेफेड ने शहद का एक एफपीओ बनाया है, इसके माध्यम से गुणवत्ता युक्त शहद उत्पादन में वृद्धि, बेहतर पैकेजिंग-मार्केटिंग हो पाएगी। हमारे यहां का शहद देश के साथ दुनिया में भी बिके इसका प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में 86 प्रतिशत छोटे किसान है। ये छोटे किसान न तो निवेश करने की क्षमता रखते हैं और ना ही जोखिम उठा सकते हैं। लेकिन, जब तक इन छोटे किसानों की ताकत नहीं बढ़ेगी तब तक आत्मनिर्भर गांव व कृषि की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में लगातार इस दिशा में प्रयास किया जा रहा है कि छोटे किसान की आमदनी बढ़े। देश के साढ़े 10 करोड़ किसानों के बैंक खातों में पीएम किसान सम्मान निधि के लगभग 1 लाख 15 हजार करोड रूपए की राशि भेजी गई है। इससे इन किसानों की 6 हजार रुपए सालाना आय बढ़ी है। इस बात पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है कि छोटे व मझौले किसान भी महंगी फसलों की खेती कर सके, उन्हें कृषि तकनीकी का लाभ मिले और गुणवत्तापूर्ण व वैश्विक मानकों के स्तर की फसल का उत्पादन कर सके।
    उन्होंने कहा कि इसके लिए किसान की फसल का पर्याप्त प्रसंस्करण करके उसे ज्यादा लाभ पहुंचाया जा सकता है, और इसीलिए केंद्र सरकार देश में दस हजार नए एफपीओ स्थापित कर रही है। सरकार इन एफपीओ पर 6865 करोड़ रू. खर्च करेगी। एफपीओ से जुड़ने पर किसान की खेती में लागत तो कम होगी ही से बेहतर बाजार एवं एकीकृत सिंचाई सुविधा का लाभ भी मिल सकेगा। एफपीओ यदि खेती के लिए 2 करोड़ रुपए तक का ऋण लेते हैं तो उन्हें ब्याज में 3 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। आज खेती के क्षेत्र में निजी निवेश व नवीनतम तकनीकी लाने की आवश्यकता है। आज गांवों में भंडारण की सुविधा नहीं है। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत 1 लाख करोड़ रुपए का कृषि अवसंरचना कोष का प्रावधान किया गया है। इसके माध्यम से गांव-गांव तक कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस जैसी अधोसंरचनाएं पहुंच पाएगी।
श्री तोमर ने कहा कि हमारे किसानों के परिश्रम और वैज्ञानिकों के शोध के कारण खाद्यान्न उत्पादन की दृष्टि से भारत अधिशेष राष्ट्र है। दूध, बागवानी उत्पाद में भी हम दुनिया में पहले या दूसरे नंबर पर हैं। अब हमें खाद्य प्रसंस्करण पर ध्यान देने की जरूरत है। खाद्य प्रंस्करण मंत्रालय कई योजनाओं के साथ इस दिशा में तेजी से कार्य कर रहा है।

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