कुछ ऐसा हुआ गजब कि हर आम आदमी सोचेगा कि काश वह विधायक सत्ता दल का होता , तो हर नेता अफसर उसके द्वार तक तो आता

 नरेन्द्र सिंह तोमर ''आनंद'' 

( एक तात्कालिक रचना ) 

हर आम आदमी के नसीब में नहीं कि हर अफसर नेता उसके द्वार तक आये 

कि उसकी आंखें सूख गईं रोते रोते कि काश् राजा लोग उसकी देहरी देंखें 

मगर नहीं आम इंसा के भूख और जमीर की कोई यहां तवज्जुह, यहां उगते सूरज को लोग सलाम करते हैं 

मरने को तो मरते हैं यहां आम लोग जानवरों की तरह , कोई भूख से , कोई बेगारी से 

कोई मरा लाचारी से तो कोई मरा तन्हाई से , किसी की मौत हुई यहां इंतजारी से 

मगर न जिंदा रहते कोई गम बांटने आया , न कोई मरने के बाद आंसू बहाने, ढाढ़स बंधाने 

जब मरा मेरे इलाके के सत्तादल के विधायक का एक पूरखा , तो क्या अफसर क्या नेता 

सबके सब अंधे हुये भूले अपनी अपनी कुरसी के और पदों के रिवाजो आलम 

बस दौड़ते गये , दौड़ते गये जैसे उनका रिश्ता हों जन्म जन्मांतर का 

बस सिर झुकाये , दंडवत किये जैसे उनकी अपनी मां ही चली गयी इस दुनिया से 

उन सब ने मिलकर मारा कुछ ऐसा करारा तमाचा आम जनता के मुंह पर 

कि अब हर आदमी ही कहता और चाहता है कि काश वह भी सत्तादल का विधायक होता ।   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

·        ग्वालियर हाई कोर्ट के जूरिस्डिक्शन क्षेत्रांतर्गत कार्य करेगा लीगल एड क्लिनिक ·        गरीबों , लाचारों को मिल सकेगी मुफ्त कानू...