जातिवाद की नाव में अफसर नेता और मीडिया हुये सवार , जब यू नहीं तो यूं सही डकरा डकरा ढरका रहे सरकार
चम्बल का मुरैना जिला फिर बना जातिवादी
संघर्ष का रणक्षेत्र ,
जातिविशेष पर जातिविशेष का मारण और बदनामी का अभियान अब मीडिया में
भी रंग दिखाने लगा
त्वरित सम-सामायिकी समाचार
नरेन्द्र सिंह तोमर ‘’ आनन्द’’
मुरैना या चम्बल में जातिवाद यूं तो बहुत पुराना रोग है , हालांकि चम्बल के इतर या चम्बल से बाहर
इसका इतना असर नहीं है , मगर चम्बल में यह जातिवाद कतिपय
समयकाटू टुच्चे पुच्चे छिछोरे व लफंगे टाइप नेताओं और पत्रकारों द्वारा फैलाया
जाता रहा है ।
अपने अपने क्षेत्र में कुंठित और बेनाम लोग या भयभीत व पूर्वाग्रहों से
ग्रस्त चम्बल की माटी का कलंक अरसे से और बरसों से बने हुये हैं ।
दुर्भाग्य की बात यह है कि मीडिया के 95 प्रतिशत भाग पर एक जाति विशेष या
समुदाय विशेष का कब्जा है और यह समुदाय विशेष अक्सर बीच बीच में अपना जातिगत
अभियान राग छेड़ता रहता है ।
चाहे जगजीवन परिहार जैसे बागी का मामला हो, या अन्य मामले एक जातिगत अभियान छेड़ना इन सबका बरसों
पुराना राग भैरवी है ।
जहां राग मल्हार गाना हो या राग ठुमरी लगाना हो वहां भी ये सब भैरवी ही
अलापते हैं ।
हालिया कुछ घटनाओं का जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि चाहे वह प्रशासन हो या
पुलिस या मीडिया , जिस तरह
से खुलेआम लोगों को मूर्ख बनाने के लिये लगातार एक मिशन के रूप में राग भैरवी
अलापा गया उससे कोई अंधा या अज्ञानी भी बता देगा माजरा क्या है-
हालांकि हम किसी का विरोध या किसी का समर्थन नहीं करते , मगर वाकयों का जिक्र लाजिम है –
1.
एस डी एम राजीव समाधिया का स्थानांतरण – मुरैना
की अंबाह तहसील में पदस्थ एस डी एम राजीव समाधिया का स्थानांतरण होते ही एक जाति
विशेष के लोग खुलकर समाधिया के समर्थन में आये और एस डी एम का स्थानांतरण रद्द
करने की मांग करने लगे , तमाश्श यह कि एक जाति विशेष के लोग , वैसे तो यह म.प्र. सिविल सेवा आचरण संहिता 1965 के प्रावधानों के एकदम
खिलाफ और म.प्र. सिविल सेवा वर्गीकरण एवं नियंत्रण अपील नियमों 1966 के तहत कार्यवाही और दंडित किये जाने वाला
परिभाषित अपराध है , मगर मीडिया ने तकरीबन रोजाना इस जाति
विशेष के अभियान को सुर्खी बना बना कर छापा , और भी मजे की
बात यह कि राजीव समाधिया ने इसका एकदिन भी खंडन या प्रतिरोध नहीं किया अर्थात वे
इस सबसे सहमत थे और उन्हीं की मर्जी से यह सब किया जा रहा था , ऊपर से तुर्रा ये कि , उनके ऊपर कानून के
पालनपोषणहार जिला प्रशासन जो म.प्र सिवल
सेवा आचरण संहिता और म.प्र. सिविल सेवा वर्गीकरण एवं नियंत्रण अपील नियम 1966 के
तहत रोजाना मातहतों को नोटिस देकर गीदड़ भभकी दिया करते हैं उस जिला प्रशासन और
संभागीय प्रशासन को इस बात की इत्तला ही हुई न कानोंकान खबर , शायद अखबार नहीं पढ़ते होंगें या फिर उन पर इन समाचारों की कटिंगें
जनसंपर्क विभाग ने भेजी नहीं होंगी ।
2.
इसके बाद राजीव समाधिया के मामले में एक बहुत
महत्वपूर्ण प्रश्न यह उत्पन्न हो गया है कि उनके ट्रांसफर से एक जाति विशेष को
विशेष तकलीफ क्यों पैदा हो गयी , जबकि प्रशासनिक अधिकारीयों के ट्रांसफर होना एक आम
बात है और एक रूटीन प्रक्रिया है और इसमें किसी के विधवा विलाप की कोई परंपरा नहीं
है , अंबाह क्षेत्र से हजारों शिकायतें ऊपर जातीं हैं मतलब
साफ है , कुद तो गड़बड़ है , हर शिकायत
के प्रति उस खंड का एस डी एम जिम्मेवार होता है बड़ी साधारण सी बात है भले ही आप
किसी शिायत को बिना निराकरण फोर्सली क्लोज करायें , मगर
शिकायत तो अपनी जगह कायम ही रहेगी । फिर यह तो जाहिर होता ही है कि जाति विशेष का
विधवा विलाप बताता है कि वे एक जाति विशेष के लिये काम कर रहे थे , जनता या पब्लिक के लिये काम करते तो यह विलाप जनता करती , फिर क्यों न इसे जाति विशेष के लिये काम करने वाले अफसर के लिये जाति
विशेष का अनाथ विलाप कहा जाये ।
3.
अंबाह में एक 5 साल की बच्ची की हत्या के
मामले को एक जाति विशेष ने इस कदर उछाला और हंगामा किया कि मानों एक निर्भया कांड
मुरैना में ही हो गया है , हत्यारे को फांसी दो , ये दो
और वो दो , अखबारों ने भी इस पर रोजाना पन्ने रंगे , और बढ़चढ़ कर इसे नेशनल इश्यू बनाने की कोशिश की , और
तो और 5 साल की बालिका के साथ दुष्कर्म भी बता दिया , आरोपी
ने बयान दिया कि उसने दुष्कर्म नहीं किया , पुलिस ने कहा कि
मेडिकल कराया है आरोपी का मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि आरोपी ने
दुष्कर्म किया या नही , मगर सारी कहानी में बालिका के
पोस्टमार्टम और उसमें दुष्कर्म की रिपोर्ट पाजिटिव या निगेटिव का किसी ने जिक्र
नहीं किया जबकि बालिका के साथ दुषकर्म हुआ या नहीं इसके लिये बालिका की पी एम
रिपोर्ट के बगैर कुछ नहीं होना जाना । मगर इसके बावजूद मीडिया ने और कतिपय जातिगत
समूहों ने जबरन कैंडल मार्च और ये मार्च वो अप्रेल तमाम मई जून निकाल डाले ,
करिश्मे की बात ये हुई कि मुरैना जिला में ही उसी समय इसी प्रकार की
अन्य थाना क्षेत्रों और तहसीलों में अन्य अनेक घटनायें बालिकाओं के साथ इसी प्रकार
की घट गईं और उनमें तो बाकायदा दुष्कर्म किया भी गया , मगर न
किसी ने मार्च , अप्रेल मई जून निकाले और न मीडिया ने उनका
रोजाना जिक्र किया और न पन्ने रंगें । हालांकि आई पी सी में धारा 193% 199 तक का एक प्रावधान है कि न्याय के किसी भी प्रक्रम पर कुछ भी ऐसा किया
जाये या कहा जाये कि जिस पर न्यायालय अपनी एक राय कायम कर ले , तो उसे मिथ्या साक्ष्य गढ़ना कहते हैं और इस प्रकार किसी को भी पुलिस केस
दर्ज होने के बाद कुछ भी कहने पर वह मिथ्या साक्ष्य की श्रेणी में आता चला जाता है
और उसे तदनुसार दंडित किया जाता है , मगर यह ुर्क भी साफ
दिखाई दिया , इसमे भी जाति विशेष ही मुखर और चीखती रही । हम
अंबाह के इस मामले में अपराध का कतई समर्थन नहीं करते लेकिन जातिविशेष द्वारा चलाई
गई मुहिम को प्रश्नगत अवश्य करते हैं
4.
मुरैना सिटी कोतवाली टी आई आरती चराटे का
मामला उल्लेखनीय अवश्य है कि आरती चराटे द्वारा कोतवाली टी आई का पदभार लेने के
दूसरे तीसरे दिन से ही उनके खिलाफ खबरें और कुछ प्रायवेट गाड़ीयों के चित्र जाति
विशेष के लोग छापने लगे थे कि प्रायवेट गाड़ी का इस्तेमाल करती है पुलिस , गश्त
करती है पुलिस वगैरह वगैरह , बाद में आरती चराटे ने क्या
गलती की यह तो पुलिस का आंतरिक मामला है मगर एक जाति विशेष का मीडिया और नेता आरती
चराटे के पीछे पड़े थे इतना तो साफ जाहिर है । हमने लगातार इस मामले की आरती के
ज्वाइंनिंग से लेकर हटाये जाने तक स्टडी की है इसलिये हम निष्कर्ष पूर्वक कह ही
सकते हैं कि आरती जाति विशेष की टारगेट पहले दिन से ही थी ।
5.
पोरसा के कोंथर के फौजी धर्म सिंह तोमर का
जमीनी मामला भी गजब है ( हालांकि इस पर
पूरी फिल्म धर्म सिंह तोमर की जुबानी , ग्वालियर टाइम्स अपनी अगली
फिल्म में दिखाने जा रही है ) खास बात यह है कि एक ही जमीन – चार सीमांकन – हर
सीमांकन में अलग अलग माप – गोया जमीन है कि चीन का नक्शा – कभी इधर बढ़ी तो कभी
उधर बढ़ी तो कभी बेहड़ में निकल पड़ी , कभी दूसरे के खेत में
100 फीट तो कभी दूसरी जगह 200 फीट , जैसे केदारनाथ पर भीमसेन
ने नंदी बने शंकर का भागते हुये कूबड़ पकड़ लिया तो केदारनाथ में कूबड़ ही
ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है और सींग जाकर नेपाल में पशुपतिनाथ में निकले
सो पशुपतिनाथ नेपाल में पूजे जाते हैं , अब धरम सिंह तोमर
फौजी बेचारे परेशान हैं कि इसके सींग कभी इधर निकलते हैं कभी उधर , आखिर सिरा पकड़ें तो कहां पकड़ें ,बेचारे तहसीलदार ,
एस डी एम , पटवारी और कलेक्टर के सताये हुये
हैं , फौज छोड़कर पान सिंह तोमर बनने की राह पर अग्रसर हैं ,
मीडिया में वे भी जातिविशेष का होने से , छेक
दिये गये हैं , भले ही वे पीड़ित हैं मगर उन्हें क्या पता
जातिविशेष का मीडिया एक तो जाति के कारण और दूसरा जाति विशेष के अफसरों ओर राजस्व
विभाग से मिलने वाले हफ्ते के कारण उनके खिलाफ उनकी आवाज को कभी नहीं छापेगा ,
टी आई आरती चराटे मीडिया को हफ्ता देती रहती तो क्यों उनकी छीछालेदर
और फजीहतें होतीं ।
6.
किस्सा नंबर विधायक सूबेदार सिंह रजौधा का है , जाति
विशेष का होने से उन्हें भी मीडिया ने टारगेट पर ले लिया है , सूबेदार सिंह रजौधा किसी गांव में किसी जगह गांव वालों के बीच थे ,
किसी ने कह दिया कि बिजली वाले लाइन नहीं जोड़ रहे हैं , खेतों में पानी देना है , पैसे दे दिये हैं फिर भी
अभी तक लाइन नहीं जोड़ी है , इस पर सूबेदार सिंह ने कह दिया
कि तू तब तक अपनी लाइन जोड लें और मोटर
चलाकर अपना काम चला , बिजली वालों को मैं देख लूंगा और बात
कर लूगा .... सूबेदार सिंह रजौधा विधायक भी इसी बात पर मीडिया के जातिविशेष के
रडार पर आकर टारगेट पर आ गये हैं , हालांकि उनका यह वीडियो
हमने भी देखा लेकिन हमें इसमें कुछ विशेष आपत्तिजनक नहीं लगा , एक फौरी समाधान कि अभी काम चला ले .....
खैर इसे न तो मीडिया या
पत्रकारिता के लिये किसी भी प्रकार से सराहनीय नहीं कहा जा सकता और न ऐसे मीडिया को
प्रौतसाहित ही किया जा सकता है जो साहब का पिछवाड़ा धोते धोते अचानक उनका तलवा चाट
एक रिक्वेस्ट कर दे कि ऐसा करो और ऐसा न करो , ऐसे जिला प्रशासन और पुलिस को
भी तवज्जुह या अहमियत दी जा सकती है जो चाटुकारों और मुंहलगे चमचों के अनुसार यह भूल
कर गैर कानूनी काम करे या कानून का पालन न करे क्योंकि वह एक पत्रकार ने रिक्वेस्ट
की है ।
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